Imam Ali Raza A.S. Ka Angoor Ka Waqia अगर हम उसकी नेहमतो की कदर करे, शुक्र अदा करे तो अल्लाह हमारी ज़िन्दगी में किसी चीज़ की कमी नहीं रहने देगा !
एक शख्स इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज किया मौला में बहुत फ़कीर हूँ मेरी मदद कर दीजिये इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद)के सामने एक सैनी रखी हुई थी जिसमे अंगूर थे,
इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने अंगूर का एक गुच्छा उठाया और उस शख्स की तरफ बढ़ा दिया उसने कहाँ मौला में अंगूर क्या करुगा मेरे बीबी बच्चे भूखे है में उनका क्या करू ये कहकर उसने अंगूर सैनी में वापस रख दिए !
थोड़ी देर ही गुज़री थी के एक दूसरा शख्स आया Imam Ali Reza A.S. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) को सलाम किया इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने उसे अंगूर का एक दाना दिया सिर्फ एक दाना ये दाना पाकर उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी उसका चेहरा खिल उठा, आक़ा आपका शुक्रिया मौला आपका अहसान आपका कर्म में आपकी ज़्यारत के लिए बहुत बेचैन था दिल आपके दीदार को तड़प रहा था बस इसीलिए आ गया था !
आप कितने करीम है मौला फिर इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने उसकी तरफ अंगूर का एक गुच्छा बढ़ा दिया उस आने वाले शख़्स ने कहाँ मौला बस यही एक दाना काफी है में एक बर्तन में पानी भरुँगा उसमे एक अंगूर को निचोड़ दूँगा मेरे घर वाले मेरे रिश्तेदार सब तबर्रुक के तौर पर थोड़ा थोड़ा ले लगे, मैं सिर्फ आपकी ज़्यारत के लिए आया था मौला, मौला आप बहुत करीम है,
इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने अंगूर की पूरी सैनी उसकी तरफ बढ़ा दी उस शख्स ने कहाँ मौला बस काफी है मौला मेरे पास आपका शुक्रिया अदा करने के लिए अलफ़ाज़ नहीं है में सिर्फ आपकी ज़्यारत को आया था और इस तरह से अपना करम फ़रमा रहे है !
इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने अपने खादिम से फ़रमाया कागज़ ले आओ में कुछ लिखना चाहता हूँ कागज़ आया तो Imam Ali Reza A.S. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद)ने अंगूर का पूरा बाग़ भी उसके नाम कर दिया वो बाग़ जिससे ये अंगूर लाये गए है ये भी तेरा !
वो शख्स कहता है में गूंगा हो चुका हूँ मौला मेरे पास आपका शुक्रिया अदा करने के अलफ़ाज़ नहीं है इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने कहाँ जाओ इस अंगूर के बाग़ के आस पास की जो हमारी ज़मीन है वो भी तुम्हारी !
वो शख्स जो पहले आया था वही मोह्जुद था एक मर्तबा गुस्से में बोला मौला में फ़कीर हूँ मैंने आपसे मांगा था ये तो सिर्फ मिलने के लिए आया था उसे अपने अपने इतना दे दिया !
इमाम अली रज़ा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने जो अँगूर के बाग़ और उसके आस पास की ज़मीन का कागज़ लिखा था तो उसके आखिर में लिखा !
मैंने तुन्हे अंगूर का एक पूरा गुच्छा दिया था तुमने उसकी कद्र ओ क़ीमत समझी शुक्र अदा नहीं किया और उसे मैंने एक दाना दिया था उसने किस हद तक शुक्र अदा किया कितनी अहमियत समझी !
और अल्लाह की सुन्नत ये है के अगर कोई शख्स उसकी नेमत का शुक्र अदा करता है अल्लाह उसमे इज़ाफ़ा कर देता है !
मै भी बस अल्लाह की सुन्नत पर अम्ल करना चाह रहा था वो शुक्र अदा करता जा रहा था मैं उसे अदा करता जा रहा था !
अगर हम उसकी नेहमातो की कद्र करे शुक्र अदा करे तो अल्लाह हमारी ज़िन्दगी में किसी चीज़ की कमी नहीं रहने देगा !
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