Dua e Noor Sagheer दुआ ए नूर (सगीर) फज़ीलत
Dua e Noor Sagheer:फज़ीलत एक दिन हज़रत रसूल ए खुदा सल्लाहो अलैहि वालेहि वसल्लम (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) मस्जिद में तशरीफ फरमा थे कि परवरदिगार आलम की तरफ से जनाबे जिब्राईल नाज़िल हुए और अर्ज़ किया कि या रसूलुल्लाह! हक तआला दुरुद व सलाम के तोहफे के बाद फरमाता है कि अल्लाह ने आपकी उम्मत के लिए यह हदिया भेजा है इसलिए यह हदिया आपके दुश्मनों से छिपा कर रखें इसलिए कि इसमे बरकत है जो दुआ माँगे कुबूल होगी
जो आदमी यह दुआ को लगातार पढ़े तो हर दिन बला व मुसीबत से दूर रहेगा तलवार व तीर का जख्म असर न करेगा और जलन करने वाले और चुगली करने वाले से हिफाजत में रहेगा इस दुआ में एक अजीब खासियत है कि कोई यह दुआ पढ़ न सकता हो तो इस दुआ को लिखवा कर अपने पास रखे इस दुआ के वास्ते से आपकी हाजत बहुत जल्दी पूरी होगी जो कोई तहारत के साथ यह दुआ अपने पास रखे तो अवाम में इज्जतदार होगा, रोज़ी में इजाफा होगा
और अगर सफर करे तो यह दुआ पढ़े और अपने पास रखे सलामती के साथ वापिस आएगा। कब्र के मुर्दो के हाथ में यह दुआ रख कर दफ्न करे तो मरने वाले पर फ़िशारे कब्र नहीं होगा और गुनाह माफ़ होंगे। लेकिन शर्त यह है कि वह आदमी मोमिन और अहलेबैत अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) का चाहने वाला होना चाहिए। इसलिए कि यह सवाब उसी के लिए है, उसकी कब्र भी नूरानी होगी
और कयामत के दिन उसके लिए फ़रिश्ते सवारी लाएँगे, पाक शराब मिलेगी और करामत का ताज ले कर आएँगे और चेहरा ऐसा नूरानी होगा कि देखने वाला कहेगा कि आने वाला कोई पैगम्बर या सादिक़ है।
Dua e Noor Sagheer: दुआ ए नूर (सगीर)
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम: बिस्मिल्लाहिन्नूरि बिस्मिल्लाहिन नूरिन नूरि बिस्मिल्लाहिन्नूरि अला नूरिन बिस्मिल्लाहिल्लज़ी हु-व मुदब्बिरुल उमूर, बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ख़-ल-कन नू-र मिनन नूरि अलत्तूरि फी किताबिम मस्तूरिन फी रक़्क़िन मन्शूरिन बि-क-द-रिम्मक़दूरिन अला नबिययिम्महबूरि अल-हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी हु-व बिल-इज्ज़ि मजकूरुन व बिल फ़खिर मशहूरि व अलस्सर्राइ वज़्ज़र्राइ मशकूरुन व सल्लल्लाहु अला सय्यिदि-न मुहम्मदिवं व आलिहित्ताहिरीन।