Namaz E Wahshat Ka Tarika | Namaz E Wahshat E Qabar Shia
Namaz E Wahshat Ka Tarika
नमाज़े वहशत ए कब्र का तरीका
किसी भी मोमीन का जब इंतेक़ाल हो जाता है और जब उसको दफन करने वापस आया जाता है तो उसी रात नमाज़े वहशत ए कब्र पढ़नी होती है मोमीन के दफन होने के बाद उसी रात किसी भी वक़्त नमाज़े वहशत ए कब्र को पढ़ा जा सकता है !
मासूमीन का फरमान है के मोनीन के दफन होने के बाद सदक़ा दे, मोमीन के लिए सबसे बेहतरीन ख़ैर का सबब होगा उसके अज़ाबे कब्र और फ़िशारे कब्र में नरमी होगी तो उस सूरत में सदक़ा देना चाहिए और नमाज़े वहशत ए कब्र पढ़नी चाहिए !
मय्यत पर कब्र की पहली शब बहुत सक्त और वहशत नाक होती हैं जिसमे कमी के लिए दो रकत नमाज़ हदया मय्यत और दो रकत नमाज़ ए वहशत पढ़नी चाहिए जिसका तरीका इस तरह है !
नियत:- नियत करनी है फलां इब्ने फलां मरहूम के लिए में नमाज़े वहशत ए कब्र पढता हूँ क़ुर्बतन इल्ललाह !
आपको मरहूम का नाम याद नहीं आ रहा तो क़स्द करने फलां मोमीन के लिए में नमाज़े वहशत ए कब्र पढ़ रहा हूँ !
पहली रकत में सुराह हम्द के बाद एक बार आयात अल कुर्सी !
और दूसरी रकत में सुराह हम्द के बाद 10 मर्तबा सुराह इन्नलज़लना पढ़े फिर सलाम पढ़ लेने के बाद ये आयात पढ़े !
اللهم صل على محمد وآل محمد، وابعث ثوابها إلى قبر فلان بن فلان
فلان بن فلان की जगह आपको मरहूम का नाम लेना है !