Roze Rakhne Ki Niyat Hindi | Roza Rakhne Ka Tarika| Ramadan Mubarak
Roze Rakhne Ki Niyat Hindi
Roze rakhne ki niyat Hindi मोमनीन जिस तरह हमको मालूम है रमजान ए करीम की आमद है खुदा वन्दे करीम हमे इतनी फुर्सत दे के हम इस महीने की बर्क़तो को हासिल कर सके और इस महीने की इबादात पूरी कर सके खुदा वन्दे करीम हम सबकी इबादात कबूल फरमाए !
रोज़े की नियत :
महीने में एक नियत कर लेगे तो काफ़ी है और नियत किस तरह करेगे फक्त ज़हन में ये नियत हो जाये के में रमजान ए करीम के तमाम रोज़े रखुगा कुर्बतन इल्ललाह ये ही ही कस्द करना काफी है ये भी दिल में कह देना काफी है ज़बान से दोहराना ज़रूरी नही है !
Tasbeeh E Fatima Ki Fazilat
रोज़ा रखने के बाद ये ज़हन में होना चाहिए के में खाऊगा नही पीयुगा नही मतलब ज़हन में ये होना चाहिए के में कोई भी ऐसा काम नही करुगा जो रोज़े जो बातिल कर दे और में वो तमाम काम अंजाम दुगा जो रोज़े को बाकी रखते है !
रमज़ान में कोई और रोज़ा नही रखा नही जा सकता है !
वाजिब रोज़े में फ़ज्र तक नियत करना ज़रूरी है या नज़र या मन्नत का रोज़ा है तो इन रोज़ो की नियत फ़ज्र तक करना ज़रूरी है फ़ज्र के बाद नियत करना रोज़े को बातिल कर देगा !
रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा कर रहे है दुसरे दिनो में तो आप रोज़े रख रहे है तो आप ज़वाल तक रोज़े की नियत कर सकते है मुस्तहब रोज़ा है तो आप मगरिब तक उसकी नियत कर सकते है लेकिन रमज़ान के रोज़े की नियत फ़ज्र से पहले करना ज़रूरी है !
महीने की नियत करना काफी है ?
जी काफी है रमज़ान ए करीम के शरू होने से पहले आप फ़क़त ये नियत कर ले के तमाम रमज़ान के रोज़ो को में अदा करुगा या तमाम रोज़े रखुगा कुर्बतन इल्ललाह ये कह देना काफी है फिर हर दिन रोज़े की नियत करना ज़रूरी नही है के फला रोज़ा रखता हूँ…
