Tasbeeh E Fatima Ki Fazilat | Tasbeeh E Fatima Kya Hai | Janab e Fatima
Tasbeeh Janab E Fatima
Tasbeeh E Fatima Ki Fazilat तस्बी ए ज़हरा की फ़ज़ीलत और कहा से तस्बी ए ज़हरा आई है और इसको पढ़ने तरीका क्या है ?
इसे तस्बी ए जनाबे ज़हरा (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) कहा जाता है जनाबे ज़हरा (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) घर के काम काज खुद ही करती थी कम ही किसी की मदद लेती थी अक्सर घर के काम खुद ही फरमाती थी !
हमे यहा एक तो ये सबक मिलता है के अपनी बच्चियों की इस तरह तरबियत करे वो घर के काम खुद करे क्यूकि इसमें बहुत ज्यादा अज्र है फ़ज़ीलत है !
Tasbeeh E Fatima Ki Fazilat
बीबी फात्मा ज़हरा जब काम करके थक जाती तो एक मर्तबा अपने बाबा के पास गयी जनाबे रसूले खुदा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने थकावट देखी तो वह पर जनाबे रसूल खुदा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) ने तस्बी इनायत की बीबी फात्मा ज़हरा (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) को, के ये तस्बी पढ़ा करे आपकी थकावट कम होगी और अह्सासे थकावट कम होगा !
फ़ज़ीलत तस्बी ए ज़हरा
इमाम मोहम्मद बाक़र अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) फरमाते है के सबसे अफज़ल ज़िक्र जो है वो हम्दे ख़ुदा में वो तस्बी ए ज़हरा है मोला फरमाते है के अगर इससे अफज़ल कोई ज़िक्र होता तो रसूल ख़ुदा अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) वही अता करता !
मोला फरमाते है नामज़ मुकम्मल होने के बाद तशुद की हालत में ही तस्बी ए ज़हरा पढ़नी चाहिए, मोला फरमाते है इस तरह तस्बी पढ़ने से आपके गुन्हा माफ़ हो जाएगे ओर आप पर जन्नत वाजिब हो जाएगी !
बाज़ मोमनीन पाँव फला कर तस्बी ए ज़हरा पढ़ते है मोला फरमाते है फिर इसको वो फ़ज़ीलत नही मिलेगी लेकिन अगर आप जिस तरह तशुद की हालत में बैठते है और इसी तरह तस्बी ए ज़हरा पढ़ते है तो इसका अज्र बहुत ज्यादा है !
Sajda e Shukar Ka Tarika
सोते से पहले तस्बी ए ज़हरा पढ़ना
सोने से पहले वजू करे फिर तस्बी ए ज़हरा पढ़े बा वजू होकर सोये इसका अज्र ये है आपकी सारी रात इबादत में शुमार की जाती है !
और इमाम से जाफर सादिक अ.स. (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) फरमाते है ये तस्बी में पसंद करता हूँ के मै हज़ार रकात नमाज़ के अवज़ में इस तस्बी को पढू हज़ार रकात नमाज़ का मुझे इतना अज्र नज़र नही आ रहा जितना इस तस्बी का अज्र है !
ऐसा नही है के नमाज़ कम है और तस्बी की अहमियत ज्यादा है हर चीज़ की अपनी अहमियत होती है हज़ार रकात जो नवाफिल है मोला फरमा रहे है उससे इस तस्बी की अहमियत ज्यादा है
क्यों के एक तो ये है ये तस्बी उनकी दादी बीबी फात्मा ज़हरा (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) से मंसूब है और दूसरा ये है के ये तस्बी खुद खुदा वन्दे आलम ने हदया की बीबी फात्मा ज़हरा (अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मद वा आले मोहम्मद) को….
तरीका तस्बी ए ज़हरा:
पहले बिस्मिल्लाह पढ़े:
34 | अल्ला हो अकबर |
33 | अलहम्दो इल्लाह |
33 | सुभान अल्लाह |